CBVS Blog Chaturvedi Thoughts | |
Welcome, anonymous (Log in) | ![]() |
निधिवन की महिमा ....!! Posted by Chaturvedi63 Saturday, 2014-April-26 निधिवन की महिमा ....!!
June 29, 2012 at 3:55pm
एक बार की बात है जब एक व्यक्ति रास लीला देखने के लिए निधिवन में झाडियों में छिपकर बैठ गया.जब सुबह हुई तो वह व्यक्ति निधिवन के बाहर विक्षिप्त अवस्था में पड़ा मिला लोगो ने उससे पूंछा पर वह कुछ भी नहीं बोला सात दिन तक उसने ना कुछ खाया ना पिया और ना ही कुछ बोला सात दिन बाद उसने एक कागज पर लिखा कि मेने राधा रानी और बिहारी जी को रास लीला करते अपनी इन आँखों से देखा है और इतना लिखकर वह मर गया. क्योकि एक तो कोई उनकी उस लीला को देख नहीं सकता और कोई अगर देख लेता है तो फिर वह इस जगत का नहीं रहता.
कहा जाता है निधिवन के सारी लताये गोपियाँ है जो एक दूसरे कि बाहों में बाहें डाले खड़ी है जब रात में निधिवन में राधा रानी जी, बिहारी जी के साथ रास लीला करती है तो वहाँ की लताये गोपियाँ बन जाती है,और फिर रास लीला आरंभ होती है,इस रास लीला को कोई नहीं देख सकता,दिन भर में हजारों बंदर, पक्षी,जीव जंतु निधिवन में रहते है पर जैसे ही शाम होती है,सब जीव जंतु बंदर अपने आप निधिवन में चले जाते है एक परिंदा भी फिर वहाँ पर नहीं रुकता यहाँ तक कि जमीन के अंदर के जीव चीटी आदि भी जमीन के अंदर चले जाते है रास लीला को कोई नहीं देख सकता क्योकि रास लीला इस लौकिक जगत की लीला नहीं है रास तो अलौकिक जगत की "परम दिव्यातिदिव्य लीला" है कोई साधारण व्यक्ति या जीव अपनी आँखों से देख ही नहीं सकता. जो बड़े बड़े संत है उन्हें निधिवन से राधारानी जी और गोपियों के नुपुर की ध्वनि सुनी है
जब रास करते करते राधा रानी जी थक जाती है तो बिहारी जी उनके चरण दबाते है. और रात्रि में शयन करते है आज भी निधिवन में शयन कक्ष है जहाँ पुजारी जी जल का पात्र, पान,फुल और प्रसाद रखते है, और जब सुबह पट खोलते है तो जल पीला मिलता है पान चबाया हुआ मिलता है और फूल बिखरे हुए मिलते है. यज्ञोपवीत Posted by ankurnlchaturvedi Monday, 2012-March-05 यज्ञोपवीत के तीन धागों का क्या तात्पर्य है ? क्या आप जानते हैं कि किस व्यक्ति को कितने धागों वाला जनेऊ धारण करना चाहिए तीनों धागे तीन अलग-अलग दायित्वों के प्रतीक होते हैं. एक ब्रह्म ऋण का, दूसरा पितृ ऋण और तीसरा गुरु ऋण का प्रतीक होता है. इन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी माना गया है. इसकी गाँठ आध्यात्मिकता की प्रतीक स्वरूप ब्रह्म-ग्रंथि होती है आम तौर पर जनेऊ पुरूष पहनते है. इसलिए विवाह के बाद अपनी पत्नी की ओर से पति को छह धागों वाले जनेऊ पहनने का प्रावधान है. यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र है :- यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् । आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।। तीन धागों वाला यज्ञोपवीत वेदत्रयी ऋगु, यजु तथा साम की रक्षा करता है ! तीनो लोको भू , भुव: और स्व: को भी निर्देशित करता है ! त्रिदेव -------ब्रह्मा, विष्णु और महेश यज्ञोपवीत धारण करने वाले व्यक्ति से प्रसन्न रहते हैं ! यह तीन सूत्रों वाला यज्ञोपवीत ब्राहमण, क्षत्रिय और वैश्य में सत्व, रज और तम इन तीन सूत्रों में प्रथम सूत्र सयंमित जीवन जीने का सन्देश देता है ! दूसरा सूत्र माता के प्रति कर्तव्य की भावना और तीसरा सूत्र पिता के प्रति कर्तव्य की भावना का बोध करता है ! ब्रह्मचारी के लिए तीन धागे वाला जनेऊ का विधान है , विवाहित पुरुषों को छः धागे वाला जनेऊ धारण करना चाहिए Sri Madhurastakam Posted by ankurnlchaturvedi Sunday, 2012-February-26 Sri Madhurastakam adharaḿ madhuraḿ vadanaḿ madhuraḿ nayanaḿ madhuraḿ hasitaḿ madhuraḿ hṛdayaḿ madhuraḿ gamanaḿ madhuraḿ madhurādhi-pater akhilaḿ madhuraḿ vacanaḿ madhuraḿ caritaḿ madhuraḿ vasanaḿ madhuraḿ valitaḿ madhuraḿ calitaḿ madhuraḿ bhramitaḿ madhuraḿ madhurādhi-pater akhilaḿ madhuraḿ veṇur madhuro reṇur madhuraḥ pāṇir madhuraḥ pādau madhurau nṛtyaḿ madhuraḿ sakhyaḿ madhuraḿ madhurādhi-pater akhilaḿ madhuraḿ gītaḿ madhuraḿ pītaḿ madhuraḿ bhuktaḿ madhuraḿ suptam madhuraḿ rūpaḿ madhuraḿ tilakaḿ madhuraḿ madhurādhi-pater akhilaḿ madhuraḿ karaṇaḿ madhuraḿ taraṇaḿ madhuraḿ haraṇaḿ madhuraḿ ramaṇaḿ madhuraḿ vamitaḿ madhuraḿ śamitaḿ madhuraḿ madhurādhi-pater akhilaḿ madhuraḿ gujā madhurā mālā madhurā yamunā madhurā vīcī madhurā salilaḿ madhuraḿ kamalaḿ madhuraḿ madhurādhi-pater akhilaḿ madhuraḿ gopī madhurā līlā madhurā yuktaḿ madhuraḿ bhuktaḿ madhuraḿ hṛṣṭaḿ madhuraḿ śiṣṭaḿ madhuraḿ madhurādhi-pater akhilaḿ madhuraḿ gopā madhurā gāvo madhurā yaṣṭir madhurā sṛṣṭir madhurā dalitaḿ madhuraḿ phalitaḿ madhuraḿ madhurādhi-pater akhilaḿ madhuraḿ TRANSLATION 1) His lips are sweet, His face is sweet His eyes are sweet, His smile is sweet His heart is sweet, His gait is sweetEverything is sweet about the Emperor of sweetness! 2) His words are sweet, His character is sweet His dress is sweet, His belly-folds are sweet His movements are sweet, His wandering is sweetEverything is sweet about the Emperor of sweetness! 3) His flute is sweet, His foot-dust is sweet His hands are sweet, His feet are sweet His dancing is sweet, His friendship is sweetEverything is sweet about the Emperor of sweetness! 4) His singing is sweet, His yellow cloth is sweet His eating is sweet, His sleeping is sweet His beauty is sweet, His tilaka is sweetEverything is sweet about the Emperor of sweetness! 5) His deeds are sweet, His liberating is sweet His stealing is sweet, His love-sports are sweet His oblations are sweet, His tranquility is sweetEverything is sweet about the Emperor of sweetness! 6) His gunja-berry necklace is sweet, His flower garland is sweet His Yamuna river is sweet, His ripples are sweet His water is sweet, His lotuses are sweetEverything is sweet about the Emperor of sweetness! 7) His gopis are sweet, His pastimes are sweet, His union is sweet, His food is sweet, His delight is sweet, His courtesy is sweet Everything is sweet about the Emperor of sweetness! 8) His gopas are sweet, His cows are sweet His staff is sweet, His creation is sweet His trampling is sweet, His fruitfulness is sweetEverything is sweet about the Emperor of sweetness! Happy Diwali Posted by Amit chaturvedi Wednesday, 2011-October-26 I wish you all a very Happy and prosperous Diwali.
Regards
Krishna Kumar chaturvedi and Family Wish you all a very Happy Diwali Posted by nikhil2009.asm Wednesday, 2011-October-26 Fight a battle within you this Deepavali .. Kill the negative and evil to bring out the positive and good .. Light, Life, Peace, Prosperity .. and lots of Wisdom and Wealth .. Here's wishing you all a very Happy Deepavali and a Prosperous and Joyous New Samvat Year 2012!!!
Regards
Mr.D.N.Chaturvedi and Family मथुरा Posted by ankurnlchaturvedi Saturday, 2011-August-20 मथुरा मथुरा उत्तरप्रदेश प्रान्त का एक जिला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। एक लंबे समय से मथुरा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म,दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास,संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास,स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद,कवि रसखान आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है। मथुरा के चारों ओर चार शिव मंदिर हैं- पूर्व में पिघलेश्वर का, दक्षिण में रंगेश्वर का और उत्तर में गोकर्णेश्वर का। चारों दिशाओं में स्थित होने के कारण शिवजी को मथुरा का कोतवाल कहते हैं। वाराहजी की गली में नीलवारह और श्वेतवाराह के सुंदर विशाल मंदिर हैं। श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने श्री केशवदेवजी की मूर्ति स्थापित की थी पर औरंगजेब के काल में वह रजधाम में पधरा दी गई व औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ डाला और उसके स्थान पर मस्जिद खड़ी कर दी। बाद में उस मस्जिद के पीछे नया केशवदेवजी का मंदिर बन गया है। प्राचीन केशव मंदिर के स्थान को केशवकटरा कहते हैं। खुदाई होने से यहाँ बहुत सी ऐतिहासिक वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं। पास ही एक कंकाली टीले पर कंकालीदेवी का मंदिर है। कंकाली टीले में भी अनेक वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं। यह कंकाली वह बतलाई जाती है, जिसे देवकी की कन्या समझकर कंस ने मारना चाहा था पर वो उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गई थी। मस्जिद से थोड़ा सा पीछे पोतराकुण्ड के पास भगवान् श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है, जिसमें वसुदेव तथा देवकी की मूर्तियाँ हैं, इस स्थान को मल्लपुरा कहते हैं। इसी स्थान में कंस के चाणूर, मुष्टिक, कूटशल, तोशल आदि प्रसिद्ध मल्ल रहा करते थे। नवीन स्थानों में सबसे श्रेष्ठ स्थान श्री पारखजी का बनवाया हुआ श्री द्वारकाधीश का मंदिर है। इसमें प्रसाद आदि का समुचित प्रबंध है। संस्कृत पाठशाला, आयुर्वेदिक तथा होमियोपैथिक लोकोपकारी विभाग भी हैं। इस मंदिर के अलावा गोविंदजी का मंदिर, किशोरीरमणजी का मंदिर, वसुदेव घाट पर गोवर्द्धननाथजी का मंदिर, उदयपुर वाली रानी का मदनमोहनजी का मंदिर, विहारीजी का मंदिर, रायगढ़वासी रायसेठ का बनवाया हुआ मदनमोहनजी का मंदिर, उन्नाव की रानी श्यामकुंवरी का बनाया राधेश्यामजी का मंदिर, असकुण्डा घाट पर हनुमान्जी, नृसिंहजी, वाराहजी, गणेशजी के मंदिर आदि हैं, जिनमें कई का आय-व्यय बहुत है, प्रबंध अत्युत्तम है, साथ में पाठशाला आदि संस्थाएँ भी चल रही हैं। विश्राम घाट या विश्रान्त घाट एक बड़ा सुंदर स्थान है, मथुरा में यही प्रधान तीर्थ है। विश्रांतिक तीर्थ (विश्राम घाट) असिकुंडा तीर्थ (असकुंडा घाट) वैकुंठ तीर्थ, कालिंजर तीर्थ और चक्रतीर्थ नामक पांच प्रसिद्ध मंदिरों का वर्णन किया गया है । इस ग्रंथ में कालवेशिक, सोमदेव, कंबल और संबल, इन जैन साधुओं को मथुरा का बतलाया गया है । जब यहाँ एक बार घोर अकाल पड़ा था तब मथुरा के एक जैन नागरिक खंडी ने अनिवार्य रूप से जैन आगमों के पाठन की प्रथा चलाई थी । भगवान् ने कंस वध के पश्चात् यहीं विश्राम लिया था। नित्य प्रातः-सायं यहाँ यमुनाजी की आरती होती है, जिसकी शोभा दर्शनीय है। यहाँ किसी समय दतिया नरेश और काशी नरेश क्रमशः 81 मन और 3 मन सोने से तुले थे और फिर यह दोनों बार की तुलाओं का सोना व्रज में बांट दिया था। यहाँ मुरलीमनोहर, कृष्ण-बलदेव, अन्नपूर्णा, धर्मराज, गोवर्द्धननाथ आदि कई मंदिर हैं। यहाँ चैत्र शु. 6 (यमुना-जाम-दिवस), यमद्वितीया तथा कार्तिक शु. 10 (कंस वध के बाद) को मेला लगता है। विश्रान्त से पीछे श्रीरामानुज सम्प्रदाय का नारायणजी का मंदिर, इसके पीछे पुराना गतश्रम नारायणजी का मंदिर, इसके आगे कंसखार हैं। सब्जी मंडी में पं. क्षेत्रपाल शर्मा का बनवाया घंटाघर है। पालीवाल बोहरों के बनवाए राधा-कृष्ण, दाऊजी, विजयगोविंद, गोवर्द्धननाथ के मंदिर हैं। रामजीद्वारे में श्री रामजी का मंदिर है, वहीं अष्टभुजी श्री गोपालजी की मूर्ति है, जिसमें चौबीस अवतारों के दर्शन होते हैं। यहाँ रामनवमी को मेला होता है। यहाँ पर वज्रनाभ के स्थापित किए हुए ध्रुवजी के चरणचिह्न हैं। चौबच्चा में वीर भद्रेश्वर का मंदिर, लवणासुर को मारकर मथुरा की रक्षा करने वाले शत्रुघ्नजी का मंदिर, होली दरवाजे पर दाऊजी का मंदिर, डोरी बाजार में गोपीनाथजी का मंदिर है। आगे चलकर दीर्घ विष्णुजी का मंदिर, बंगाली घाट पर श्री वल्लभ कुल के गुसाइयों के बड़े-छोटे दो मदनमोहनजी के और एक गोकुलेश का मंदिर है। नगर के बाहर ध्रुवजी का मंदिर, गऊ घाट पर प्राचीन विष्णुस्वामी सम्प्रदाय का श्री राधाविहारीजी का मंदिर, वैरागपुरा में प्राचीन विष्णुस्वामी सम्प्रदाय के विरक्तों का मंदिर है। इससे आगे मथुरा के पश्चिम में एक ऊंचे टील पर महाविद्या का मंदिर है, उसके नीचे एक सुंदर कुण्ड तथा पशुपति महादेव का मंदिर है, जिसके नीचे सरस्वती नाला है। किसी समय यहाँ सरस्वतीजी बहती थीं और गोकर्णेश्वर-महादेव के पास आकर यमुनाजी में मिलती थीं। एक प्रसंग में यह वर्णन है कि एक सर्प नंदबाबा को रात्रि में निगलने लगा, तब श्रीकृष्ण ने सर्प को लात मारी, जिस पर सर्प शरीर छोड़कर सुदर्शन विद्याधर हो गया। किन्हीं-किन्हीं टीकाकारों का मत है कि यह लीला इन्हीं महाविद्या की है और किन्हीं-किन्हीं का मत है कि अम्बिकावन दक्षिण में है। इससे आगे सरस्वती कुण्ड और सरस्वती का मंदिर और उससे आगे चामुण्डा का मंदिर है। चामुण्डा से मथुरा की ओर लौटते हुए बीच में अम्बरीष टीला पड़ता है, यहाँ राजा अम्बरीष ने तप किया था। अब उस स्थान पर नीचे जाहरपीर का मठ है और टीले के ऊपर हनुमान्जी का मंदिर है। ये सब मथुरा के प्रमुख स्थान हुए। इनके सिवाय और बहुत छोटे-छोटे स्थान हैं। मथुरा के पास नृसिंहगढ़ एक स्थान है, जहाँ नरहरि नाम के एक पहुंचे हुए महात्मा हो गए हैं। इन्होंने 400 वर्ष के होकर अपना शरीर त्याग किया। प्रत्येक एकादशी और अक्षय नवमी को मथुरा की परिक्रमा होती है। देवशयनी और देवोत्थापनी एकादशी को मथुरा-गरुड गोविन्द्-वृन्दावन् की एक साथ परिक्रमा की जाती है|यह परिक्र्मा २१ कोसी या तीन वन की भी कही जाती है| वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को रात्रि में परिक्रमा की जाती है, जिसे वनविहार की परिक्रमा कहते हैं। हम मथुरा के चौबे हैं Posted by ankurnlchaturvedi Saturday, 2011-May-14 हम मथुरा के चौबे हैं छानें, घोंटें, माल उड़ावें, हम मथुरा के चौबे हैं जहाँ भी जावें, रंग जमावें, हम मथुरा के चौबे हैं विप्र बने तो सबसे उत्तम स्थान बनाया वर्णों में मल्ल बने तो गामा का भी शीश झुकाया चरणों में पेशेवर जो बने तो सबसे लोहा मनवाया हमने बिजनेस हो या पोलिटिक्स हो, नाम कमाया है हमने 'ख़बरों के सरताज' कहावें, हम मथुरा के चौबे हैं जहाँ भी जावें रंग जमावें, हम मथुरा के चौबे हैं पाक कला मैं राजा महाराजाओं ने माना हमको वाक कला का विदुर, ज़माने भर ने पहिचाना हमको रोजगार, जिजमानी हो या रामलीला, सब में अव्वल कहीं कहीं पर लेकिन अब, हम दिखने लगे भी हैं दुर्बल 'सब' न 'सभी को' 'खुल' बतलावें, हम मथुरा के चौबे हैं जहाँ भी जावें रंग जमावें, हम मथुरा के चौबे हैं एक बार फिर से, मिल जुल कर, चलो कदम यूँ बढाएं हम कहीं कहीं जो क्षति हुई है, फिर से उसे भर पायें हम सबसे खुल कर मिलें, सभी के दिल में जगह बनायें हम उदहारण दें अपना सबको, 'कुछ ऐसा' फिर कर जायें हम दुनिया को फिर से 'जतलावें', हम मथुरा के चौबे हैं जहाँ भी जावें रंग जमावें, हम मथुरा के चौबे हैं Previous page | Next page
|
Archive |